The best Side of वैष्णव धर्म

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सम्यक् प्रदीयत इति सम्प्रदाय:- गुरुपरम्परा सम्यक् रूप से चली आ रही है और जिसमें गुरु शिष्य को सम्यक रूप से मंत्र आराध्य, वैष्णव धर्म आराधना तथा आचार पति प्रदान करता है उसका नाम सम्प्रदाय है। धर्म का पथ विशेष सम्प्रदाय कहलाता है। वैष्णव धर्म इसका अपवाद नहीं है। वैष्णव धर्म का सर्वेक्षण करने पर ज्ञात होता है।

मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया।। ओउम जय।।

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(२) ब्रह्म सम्प्रदाय जिसके आद्य प्रवर्तक चतुरानन ब्रह्मादेव और प्रमुख आचार्य माधवाचार्य हुए। जो वर्तमान में माध्वसम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है।

Krishna is frequently called acquiring the looks of a darkish-skinned individual which is depicted as a young cowherd boy taking part in a flute or to be a youthful prince offering philosophical direction and steerage, as while in the Bhagavad Gita.[102]

(४) रूद्र सम्प्रदाय - इस सम्प्रदार्य के प्रवर्तक रूद्र और प्रतिष्ठापक आचार्य विष्णु स्वामी हैं। श्रीमद्वल्लभाचार्य ने इसे गौरव के शिखर पर पहुँचाया । इनका दार्शनिक सिद्धान्त 'शुद्धाद्वैत ब्रह्मवाद' है। यहाँ भगवान् श्री कृष्ण की ही भावमयी सेवा होती है। इसे 'वल्लभ सम्प्रदाय' या 'पुष्टिमार्ग' के नाम से जाना जाता है। इस मत के अनुयायी 'पुष्टिमार्गीय वैष्णव' कहलाते हैं। नाथद्वारा में विराजित श्रीनाथजी पुष्टिमार्ग के सर्वस्व हैं। यहाँ पुष्टिमार्ग की प्रधान पीठ या गृह है। पुष्टिमार्ग भगवत्कृपा का मार्ग है। पुष्टिमार्गीय वैष्णव का विश्वास है कि भगवत्कृपा से ही जीव में भक्ति का उदय होता है तथा उसे भगवत्सेवा का सौभाग्य प्राप्त होता है। प्रभु की प्राप्ति परम प्रेम से ही होती है। स्नेहात्मिका सेवा और दैन्य से प्रभु रीझते हैं और भक्त को स्वानुभव कराकर कृतार्थ कर देते हैं। प्रभु श्री गोवर्धनधर इतने कृपालु हैं कि निकुंज के द्वार पर खडे़ होकर वामभुजा उठा कर भक्तों को टेरते हैं तथा उनके मन को वश में करके अपनी मुट्ठी में रख लेते हैं। प्रभु श्रीकृष्ण की भक्ति फलात्मिका है और प्रभु स्वयं ही फल है। उनकी कृपा जीव की कृतार्थता है। यह वैष्णव जीवन की सबसे बड़ी साध है - यही वैष्णव जीवन का लक्ष्य है।

प्राचीन भारत में वैष्णव धर्म का विकास

इनके अलावा भी स्वामीनारायण भगवान द्वारा स्वामीनारायण संप्रदाय का प्रवर्तन हुआ, जो की एक लोकप्रिय वैष्णव सम्प्रदाय है।

श्लोक का तात्पर्य है कि किरात, हूण, आंध्र, पुलिंद, पुल्कस, आभीर, कंक, यवन, खश आदि जंगली तथा विधर्मी जातियों ने और अन्य पापी जनों ने भगवान्‌ के भक्तों का आश्रय लेकर शुद्धि प्राप्त की है, उन प्रभावशाली भगवान्‌ को नमस्कार। यवन हेलियोदोर का भागवत धर्म में दीक्षित होना इस पथ का ऐतिहासिक पोषक प्रमाण है। यह भागवतों की सहिष्णुतावृत्ति का नि:संशय परिचायक तथा उद्बोधक है।

वैष्णव धर्म या भागवत धर्म (प्राचीन भारत में वैष्णव धर्म का विकास)

सर्वप्रथम किस उपनिषद में कृष्ण का उल्लेख देवकी-पुत्र और अंगिरस के शिष्य के रूप में मिलता है – छांदोग्य उपनिषद्

Though the origins of equally his cult and his major temple are debated, There exists crystal clear proof which they currently existed by the 13th century.

दूसरे परियोजनाओं में विकिमीडिया कॉमन्स

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